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क्या ऐसा हो सकता है?

मजेदार दुनिया
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विज्ञान कहाँ से कहाँ पहुच गया है देखिये इस रिपोर्ट में

मनोज जैसवाल : आवाज की तरंगें होती हैं, यह विज्ञान का प्रारंभिक ज्ञान रखने वाले लोग भी जानते हैं। ये तरंगें किसी वस्तु से टकराकर परावर्तित होती हैं, यह भी हम जानते हैं। आवाज की गूंज भी इसी से होती है। इसी प्रक्रिया के आधार पर सोनार जैसे यंत्र बनाए जाते हैं, जो समुद्र में जहाजों या पनडुब्बियों का पता देते हैं। चमगादड़ जैसे जीव भी अंधेरे में सोनार जैसे प्रभाव से ही वस्तुओं का पता लगाते हैं। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि आवाज की तरंगें किसी वस्तु से टकराएं और उसकी सतह के सहारे घूमकर ऐसे निकल जाएं, जैसे वह वस्तु वहां हो ही नहीं? अगर ऐसी कोई वस्तु हुई, तो वह सोनार जैसे उपकरणों को चकमा दे देगी, और इसका इस्तेमाल रिकॉर्डिग स्टूडियो और प्रेक्षागृहों में भी हो सकती है। खबर यह है कि अमेरिका में कुछ वैज्ञानिकों ने ऐसी वस्तु बनाने में सफलता पाई है। अब यह भी सोचा जा सकता है कि अगर आवाज की तरंगों को ऐसा मोड़ा जा सकता है, तो प्रकाश की तरंगों को क्यों नहीं? और अगर प्रकाश की तरंगों को इस तरह से कोई वस्तु मोड़ सके, तो वह वस्तु दिखेगी ही नहीं, यानी अगर किसी ऐसे पदार्थ के कपड़े कोई व्यक्ति ओढ़ ले, तो वह अदृश्य हो जाएगा। प्रकाश की तरंगें उस कपडे के गिर्द घूमकर फिर पहले जैसे चलने लगेंगी, तो उसके पीछे का दृश्य दिखाई देगा। पहला आइडिया इस किस्म का मिस्टर इंडिया का लबादा बनाने का ही आया था और उसी सिद्धांत के आधार पर आवाज की तरंगों से बचने वाले पदार्थ को बनाया गया। मूल विचार यह है कि कोई ऐसा पदार्थ हो, जो प्रकाश की तरंगों के टकराने के बाद उन्हें परावर्तित नहीं करे, बल्कि वे उसकी सतह के साथ-साथ मुड़कर निकल जाएं। ऐसे पदार्थ प्रकृति में तो नहीं मिलते, लेकिन कृत्रिम रूप से प्रयोगशाला में बनाए जा सकते हैं, इन्हें मेटामैटेरियल कहते हैं। इनमें बहुत सूक्ष्म उभार होते हैं, जिनसे टकराकर प्रकाश की किरणें मुड़ जाती हैं। किरणों के मुड़ने की शर्त यह है कि ये सूक्ष्म उभार, किरणों की तरंग लंबाई के बराबर होने चाहिए। सैद्धांतिक रूप से इस तरह किसी चीज को गायब किया जा सकता है, व्यावहारिक समस्या यह है कि अब तक उतने सूक्ष्म उभारों वाला मेटामैटेरियल बनाना संभव नहीं हुआ है। अब तक उन तरंग लंबाइयों से कुछ ज्यादा लंबाई के उभारों वाला मेटामैटेरियल बनाया जा सका है। कुछ इन्फ्रा रेड किरणों को मोड़ने में सफलता मिली है। एक तो ऐसा पदार्थ बनाने में सफलता मिली है, जो 3-डी हो यानी वह किसी चीज को हर तरफ से छिपा ले। पहले जो पदार्थ थे, वे 2-डी थे, यानी वे किसी एक कोण से ही चीजों को छिपा पाते थे। वैज्ञानिकों ने कैल्साइट नामक एक ऐसा पदार्थ खोजा है, जिसका गुण यह है कि वह प्रकाश तरंगों को लंबाई के आधार पर विभाजित कर देता है। अगर कोई वस्तु इन विभाजित किरणों-तरंगों के बीच हुई, तो वह दिखाई नहीं देगी। कैल्साइट, मेटामैटेरियल से ज्यादा सरल पदार्थ है और इसका इस्तेमाल भी ज्यादा सरल है। यानी देर-सवेर एच जी वेल्स ने ‘द इनविजिबल मैन’ में जो कल्पना की थी, वह यथार्थ बन सकती है। अभी तक तो वैज्ञानिकों ने इन्फ्रा रेड प्रकाश में बहुत छोटी चीजों को गायब करने का हुनर सीखा है, कल सामान्य प्रकाश में चीजें गायब हो सकेंगी, दीवारों के सचमुच कान उग आएंगे, क्योंकि आवाजें उन्हें लांघकर दूसरी तरफ आ जाएंगी। अगर आपको आवाजों से बचने वाला ऐसे कपडे मिल जाए, तो बस कुछ पंछियों से बचकर रहिएगा, क्योंकि उनके लिए आप अदृश्य हो जाएंगे और वे आपसे टकरा सकते हैं। गायब होने वाले ऐसे कपड़े मिल जाए, तो बाकी सबको आपसे बचना होगा। <आलेख के कुछ अंश पीटीआई से साभार> लाभार्थियों के खाते में सब्सिडी की रकम सीधे होगी ट्रांसफर

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